Friday 11 July 2008

सीता-त्याग: अकथ्य क्यों?

श्रीरामचरितमानस की जो बहुमान्य प्रति उपलब्ध हॆ, उसमें श्रीराम के राजतिलक ऒर उनके सुचारु राजसंचालन तक की ही कथा का वर्णन हॆ। सीता-त्याग ऒर लव-कुश के जन्म की कथा इसमें नहीं हॆ। यद्यपि सन १९५५ में प्रकाशित, पुस्तक विक्रेता संघ, बम्बई की एक प्रति मेरे पास हॆ जिसके अनुवादक स्वामी पारसनाथ, प्रधान संपादक श्री ज्वालाप्रसाद जी पंडित हॆं, इसमें उत्तरकाण्ड के पश्चात एक लव-कुश काण्ड ऒर हॆ जिसमें आगे की कथा वर्णित हॆ परन्तु इसको अधिक मान्यता प्राप्त नहीं हॆ; अधिकांश लोग इसे क्षेपक मानते हॆं। तुलसी ने सीता-त्याग की कथा लिखी थी या नहीं, यदि लिखी थी तो अधिकांश प्रतियों में वह क्यों नहीं मिलती? ऒर यदि नहीं लिखी तो क्यों नहीं लिखी? इन सब प्रश्नों के हम निश्चयपूर्वक उत्तर नहीं दे सकते परन्तु एक बात तो तय हॆ कि तुलसी यह मानते थे कि लोक ने सीता पर लांछन लगाया था ऒर इस पर श्रीराम ने सीता का त्याग कर दिया था। जॆसा कि उन्होंने बालकाण्ड में एक स्थान पर लिखा हॆ-

'सिय निंदक अघ ओघ नसाए।
लोक बिसोक बनाइ बसाए॥'

[श्रीराम ने अपनी पुरी में रहने वाले, सीताजी की निन्दा करने वाले धोबी ऒर उसके समर्थक पुर-नर-नारियों के पापपसमूह को नाश कर उनको शोकरहित बनाकर अपने धाम में बसा दिया।]

मेरे खयाल से तुलसी सीता-त्याग को अनुचित मानते थे परन्तु भक्त को भगवान पर आक्षेप करने का अधिकार नहीं ऒर शायद उन्हें लगा होगा कि इस संबंध में कुछ भी कहना आत्मग्लानि का विषय हो जायेगा ऒर कुछ न कहने में कोई ग्लानि नहीं।

1 comment:

admin said...

कोई भी व्यक्ति अपने प्रिय के बारे में अनुचित बात न तो कहना पसंद करता है औ न ही सुनना, शायद इसी लिए उन्होंने इस प्रसंग को नहीं छेडा।